mughal kaal itihaas part 2 humayu and shershah suri [ मुग़ल काल इतिहास भाग 2 हुमायु और शेरशाह सूरी [
ONLINE EXAM PREPARATIONMarch 05, 20170
हुमायू
बाबर के चार पुत्र थे हुमायू , कामरान , असकारी और हिंदाल ।
हुमायू का शाब्दिक अर्थ भाग्यशाली होता है ।
23 साल की उम्र मे हुमायू 1530 मे गद्दी पर बेठा । इससे पहले वह बड़ख्शा का सूबेदार था ।
1534 मे बहादुर शाह ने गुजरात पर हमला किया वहा की रानी कर्मवाती ने हुमायू को मदद के लिए राखी भेजी लेकिन हुमायू समय पर नहीं पहुंचा । कर्मवाती ने जौहर ( अग्नीदाह ) कर लिया ।
1534 मे हुमायू ने गुजरात पर हमला किया । वहा का शासक बहादुर शाह भाग गया । उसका तोपची रूमी खान हुमायू की सेना मे शामिल हो गया । 1536 मे पुर्तगालियों की मदद से बहादुर शाह ने पुनः गुजरात को जीत लिया । इसी दौरान शेरशाह ने बंगाल पर अधिकार कर लिया । पुर्तगालियों ने बहादुर शाह की हत्या कर दी ।
1538 मे हुमायू ने बंगाल पर हमला किया । लेकिन तब तक शेरशाह बंगाल को लूट कर जा चुका था।
लूटा हुआ धन शेरशाह ने बिहार के रोहताशगढ़ मे छिपा दिया ओर बंगाल को आग लगा दी ।
हुमायू ने बंगाल के जनसाधारण लोगो की मदद की और बंगाल का नाम जन्नताबाद रख दिया ।
1539 मे दिल्ली लौटते समय हुमायू और शेरशाह के मध्य चौसा का युद्ध हुआ ।
1540 मे हुमायू और शेरशाह के मध्य बिलग्राम ( कन्नौज ) का युद्ध हुआ इस युद्ध मे हुमायू बुरी तरह से पराजित हुआ ओर भाग गया । भागते वक़्त नदी पार करने के लिए हुमायू नदी ( गंगा ) मे कूद गया , जेबी वह डूबने लगा तो एक मिश्ती ने उसे बचाया । बाद मे पुनः बादशाह बनने पर हुमायू ने उस मिश्ती को एक दिन के लिए सुल्तान बनाया । उस एक दिन मे उस सुल्तान ने चमड़े के सिक्के जारी किए ।
इस तरह से हुमायू ने लगभग 15 साल तक घुम्मकड़ की तरह जीवन काटा । उसने सिंध मे शरण ली इसी दौरान हुमायू ने हिंदाल के आध्यात्मिक गुरु मीर अली अकबर जामी की पुत्री हमीदा बानो बेगम से निकाह किया । बाद मे इसी हमीदा बानो ने अकबर को जनम दिया ।
15 अक्टूबर 1542 मे अमरकोट के राणा वीरसाल के महल मे अकबर का जनम हुआ ।
असकरी की पत्नी महामंगा ने अकबर का पालन पोषण किया ।
हुमायू अमरकोट पलायन करके ईरान गया ओर वहा के शाह से मदद मांगी लेकिन उसने शर्त राखी सुन्नी से शिया बनने की ।
1545 मे हुमायू ने काबुल और कंधार को दोबारा जीता ।
1555 मे सरहिंद के युद्ध मे शेरशाह को हराकर हुमायू पुनः गद्दी पर बेठा ।
1556 मे मे हुमायू की मृत्यु दीनपनह पुस्तकालय की सीढ़ियो से गिरकर हुमायू की मृत्यु हो गई ।
हुमायू की मौत पर इतिहासकार लेनपुल कहता है , “ हुमायू जीवन भर लड़खड़ाता रहा और लड़खड़ाता हुआ ही मर गया “ ।
हुमायू की कई कमजोरिया थी । वह अफीम का ज्यादा सेवन करता था । ज्योतिषी मे बहूत ज्यादा विश्वास करता था
हुमायू सप्ताह के सात दिन सात रंग के कपड़े पहनता था ।
हुमयुनामा की रचना गुल बदन बेगम ने की ।
हुमायू का मकबरा दिल्ली मे है ।
शेरशाह सूरी
शेरशाह सूरी का जनम पुंजाब के होशियार पुर के बजवाड़ा नामक स्थान पर हुआ था ।
इसका बचपन का नाम फरीद खान था ।
इसके पापा हसन खा जौनपुर के सासाराम के जमींदार थे ।
कहते है की फरीद ने तलवार के एक ही वार से शेर की गर्दन काट दी थी । इसी बहादुरी से प्रसन्न होकर बिहार के अफगान शासक मुहम्मद बहार खाँ लोहारी ने शेरखान की उपाधि दे दी ।
चँदेरी के युद्ध मे शेरखान बाबर की तरफ से लड़ा था ।
चुनार ( बिहार ) के कीलेदार ताज खाँ की विधवा पत्नी लाड़ मल्लिका से निकाह करके चुनार किला प्राप्त किया
1539 मे हुमायू ओर शेरखान के मध्य चौसा का युद्ध हुआ जिसमे शेरखान जीता ओर शेरखान शेरशाह की उपाधि धारण की ।
1540 मे बिलग्राम के युद्ध मे हुमायू को हराकर दिल्ली पर अपना अधिकार कर लेता है ।
शेरशाह ने 1541 मे खिज्र खाँ के विरोध को दबाने के लिए बंगाल का प्रांतीय दर्जा समाप्त कर दिया ओर बंगाल को सरकारो मे विभाजित कर दिया । वहा पर एक राजस्व अधिकारी की नियुक्ति की गई जिसे आमीन ए बांग्ला कहा जाता था । पहला आमीन ए बांग्ला काज़ी फजीलात था ।
1543 मे मालवा रायसेन ( मध्य प्रदेश ) के राजा पूरणमल को हराकर धोखे से उसकी हत्या कर देता है । इसी बीच शेरशाह का बेटा कुतुबशाह आत्महत्या कर लेता है ।
1544 गिरि सामोल का युद्ध – शेरशाह बनाम मालदेव राठौड़ ( जोधपुर ) । इसे जैतारण का युद्ध भी कहा जाता है ।
शेरशाह बीकानेर के शासक कल्याण दास ओर मेड़ता के शासक बीरम देव की तरफ से युद्ध लड़ता है।
शेरशाह मालदेव के सेनानायक जैता ओर कुंपा के नाम से पत्र फिंकवा देता है । पत्र पड़कर मालदेव सेना सहित वापिस लौट जाता है । जैता ओर कुंपा इस आरोप से आहत होकर शेरशाह से युद्ध करते है और वीरगति को प्राप्त हो जाते है ।
फिर भी शेरशाह बड़ी मुश्किल से ही इस युद्ध को जीत पाता है ।
इस युद्ध के बारे मे कहा जाता है
बोल्यों सूरी राज यूं , गिरि घाट घमसाण ।
मुट्ठी खातर बाजरी , खो देतो हिंदवाण । ।
मतलब शेरशाह कहता है की “ मे मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता “
1545 का कलिंजर अभियान इसका अंतिम अभियान था उस समय कलिंजर का शासक किरत सिंह था
उक्का नामक आग्नेय शस्त्र चलाते हुये शेरशाह की मृत्यु हो गई ।
इस्लाम शाह सुर ये शेरशाह सूरी का बेटा था । इसने मानकोट मे किलो की शृंखला बनवाई । जिसमे शेरगढ़ , इसलामगढ़ , मानकोट , रसीदगढ़ , फिरोजगढ़ आदि है ।
आदिलशाह सुर ये सल्तनत का एकमात्र नर्तक शासक था । हेमू इसका प्रधानमंत्री था ।
हेमू यह रेवाड़ी ( हरियाणा ) की गलियों मे नमक बेचता था ।
पद्मावत गृन्थ की रचना करने वाला मालिक मुहम्मद जायसी शेरशाह का दरबारी था ।
शेरशाह का मकबरा सासाराम बिहार मे झील के बीच बना हुआ है ।
शेरशाह ने ग्रांट ट्रंक सड़क का निर्माण करवाया । इसके अलावा आगरा से बुरहानपुर व लाहौर से मुल्तान के बीच सड़क बनवाई । इन सड़कों के किनारे 1700 सरायों का निर्माण किया गया ।
सराय व सड़कों को शेरशाह की धमनीया कहा जाता है ।
शेरशाह ने दिल्ली मे पुराना किला का निर्माण करवाया । इसके दो दरवाजे है खूनी दरवाजा ओर लाल दरवाजा । किले के अंदर किले ए कुहनी नामक मस्जिद का निर्माण करवाया ।
रोहताशगढ़ मे किले का निर्माण किया । कन्नौज के पास शेरसुर नामक नगर बसाया ।
पाटलीपुत्र का नाम बदल कर पटना किया
शेरशाह के दरबार मे टोडरमल था जो बाद मे अकबर के नवरतनों मे शामिल हुआ ।
इसके दरबार मे अब्बास खान सरवानी थे जिन्होने ‘तोहफा ए शेरशाही’ और ‘तोहफा ए अकबरशाही’ जैसी किताबों की रचना की ।
शेरशाह सूरी के समय प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई सरकार थी ।
भूमि को नापने के लिए सिकंदरी गज का प्रयोग किया ।
भू राजस्व 1/3 निर्धारित किया लेकिन मुल्तान से ¼ लिया जाता था ।
इसने चाँदी का एक सिक्का चलाया जिसे रुपया कहा गया बाद मे यही रुपया ब्रिटिश प्रणाली का आधार बना । तांबे के सिक्को को दाम कहा जाता था ।
शेरशाह ने 23 टकसालों का निर्माण किया । सिक्को मे अपना नाम , पद , और टकसाल का नाम देवनागरी और अरबी दोनों भाषाओ मे लिखा होता था ।
इसने वर्तमान राष्ट्रीय राजमार्ग 2 का निर्माण करवाया था